तुम्हे डाकिन नहीं कहूँगा माँ
तुम्हारा दूध अमृत का झरना
माँ, तुम्हे डाकिन नहीं कहूँगा
माफ़ कर दूंगा उनको
जो तुम्हे तरछोड़ कर
चले गए डोलरिया देशमें
उनके साफ सुथरे सूत-बुटकी
इतनी भी इर्षा नहीं करूँगा
वाइट हाउस की शीतल छाया उन्हें मुबारक.
तुम पुकारोगी तो
सबसे पहले मै आऊंगा तुम्हारे साथ.
भुला दूंगा सर पर मैला उठाती मेरी गर्भवती स्त्री को.
चैत्र की तपती धूपमे
कमर से टेढा मेरा बाप
जो खेत काम ढूंडता
भुला दूंगा
सर पर अत्याचारों की जलती सिघ्डी
उठाये हिजरत करते मेरे बांधवों को ..
मै सब कुछ भुला दूंगा
तुम्हारी प्रतिष्ठा अनमोल..
मै जंगलों से, घाटियोंसे बार बार होता रहूँगा विस्थापित
शहेरों की सडकों पर .
बांधने दूंगा उन्हें मेरी छाती पर
सरदार सरोवर, शौपिंग सेंटर, अम्युझ्मेंट पार्क और अभयारण्य.....
मै न होने दूंगा
तुम्हारे मनको कचोटने का अहसास .....
माँ भले ही तुमने मेरे और उनके बिच
तर तम किया, दगाधोखा भी किया
वो मेरा भाई, मेरा बाप, मेरा मालिक
मेरा अन्नदाता !
उसकी जूती मेरे दांतों तले..
उसकी मुत्तिसे
झग्मगते रहे
तुम्हारे सचिवालय, संसद, न्यायपालिकाए..
जब तक सूर्य चन्द्र है.
मै चढ़ता रहूँगा
हर कारगिल जन्ग में
देशभक्ति के क्रोस पर
तुम्हारी धूलि को
मेरे अछूत लहु का प्रणाम
माँ क्या मैं तुम्हे कभी भी डाकिन नहीं कहूँगा?
- राजु सोलंकी
- अनुवाद - मीना त्रिवेदी
- अनुवाद - मीना त्रिवेदी