रविवार, 29 अप्रैल 2012

मुंह में तंबाकु की छोटी सी गड्डी जितने लोग



"मुंह मे तंबाकु की छोटी सी गड्डी जैसा हमारा गांव", परेश रावल 'मालामाल वीक्ली' फिल्म में उसके गांव के बारे में ऐसा कहता है. वैसे परेश मोदी-भक्त है, मगर एक्टर अच्छा है. उसकी यह बात हमें अभी इस लिए याद आ गई कि हमारे देश में ब्राह्मण लोग भी मुंह में तंबाकु की छोटी सी गड्डी जैसे है, और जिस तरह से तंबाकु की छोटी सी गड्डी पूरे शरीर में नीकोटीन का जहर फैला देती है, उसी तरह ब्राह्मण हमारे शरीर और मन में 'हिन्दुत्व' का जहर फैला देते है.

यह बात हमें इसलिए भी याद आ गई कि अभी अभी हमारे ब्लोग में 'हिन्दु राष्ट्र किसे कहते है?' पोस्ट पर सूरत के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसी राजपुरोहित ने 'जागो हिन्दुओ, हिन्दुस्थान हमारा है' नाम से टीप्पणी करते हुए लिखा है, "आप जेसे लोग इस हिन्दुस्थान मै पाप हो काश तुम भि गोधरा कान्ड मै मर गये होते बेव्कुफ जिन कार सेव्को को जिन्दा जलाया वो क्या अतन्वादि थे." कितनी सटीक बात कही है, इस संघी ने. हम सचमुच बेवकुफ है, वर्ना तंबाकु की छोटी गड्डी जितने लोग पूरे देश पर राज कैसे कर सकते हैं?

और गुजरात के हमारे दलित तो वाकई में बेवकूफ है, वर्ना जिन संघीओं ने 1985 में 70 दिन तक गांधीनगर सचिवालय में दलितों के रोस्टर के खिलाफ आंदोलन किया और रोस्टर खतम किया, दलितों के आरक्षण के खिलाफ बार बार दंगा किया और सत्ता में आने के बाद 40,000 बेकलोग की जगह कहां छू मंतर कर दी गई, किसी को पता तक चलने नहीं दिया, जिन संघीओ ने दलितों और आदिवासीओं को हिन्दुत्व के नाम पर उक्सा कर मुसलमानों के खिलाफ खडा कर दिया, उनकी चालाकी कोई समज नहीं पा रहा है, और वे हमें आज बेवकूफ कहने की हिंमत कर सकते हैं. हम वाकई में मूर्ख ही है.

मगर हम हमें हमारी मूर्खता का पता चल गया है. ये हमारे सारे ब्लोग्स उसी का नतीजा है.  

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

गोधराकांड - दस साल बाद



दस साल के बाद गोधराकांड के बारे में सोचता हूँ तो मन में एक प्रश्न उठता है। क्या एक्शन-रीएक्शन की फेनेटिकली मोडीफाईड (एफएम) थीयरी सही है? जैसे कि,

-       1993 में बाबरी मस्जिद को ध्वंश करने के लिये कट्टरपंथी हिन्दुओं का एक्शन।

-       2002 में गोधरा में ट्रेन जलाने का रीएक्शन

-  बदला लेने के लिये समस्त राज्य में लघुमतियों के उपर राज्य प्रेरित वंशीय संहार का एक्शन।

- घिनौने हत्याकांडो के साथ चुनावो में हिन्दुत्व की लहर का रिएक्शन,

और फिर,

पिछले दस सालो में आई वाइब्रन्ट एक्शनो की बाढ,

  रू.1200 करोड के खर्च से साकार हुई रीवरफ्रन्ट योजना, जिसने    सर्जी विस्थापितों की कतार और पंतगोत्सव की भरमार,

  जहां गांवो में से 50 से 85 प्रतिशत लोग रोजीरोटी की खोज में पलायन करते है, ऐसे कच्छ में 7000 रू के ए.सी टेन्टो में शुरू हुई रणोत्सव की क्रीडा,

-           जिसका बाजार मूल्य रू.10,000 प्रति चोरस मीटर है, उस जमीन ताता को 900 रू प्रति चोरस मीटर के भाव से बेचकर रू. 30,000 करोड रूपये का फायदा करवाया,

-          जिसके वतन रूपपुर में दलितों की स्मशानभूमि छीन ली गई उस निरमा के करसन पटेल को रू. 2500 करोड में सीमेन्ट बनाने के लिये 'देवो को भी दुर्लभ' महुवा की उपजाऊ जमीन देने की सरकार ने जिद की,

-    पिछले साल 52 लाख और इस साल 60 लाख गट्ठर रू की ‘वाईब्रन्ट' निकास में जेनेटिकली मोडिफाईड (जीएम) बीटी कोटन का 90 प्रतिशत हिस्सा है, जिसकी बोआई में हर साल एक लाख मासूम आदिवासी बच्चों की पढाई और जिंदगी खत्म होती है,

बीते दस सालो में किसने क्या किया?

भाजपा सरकार - उसने ब्युटिफिकेशन, ग्लोबलाईझेशन, प्राईवेटाईझेशन का कांग्रेस के द्वारा शुरू किये गए एजेन्डा का अत्यंत घातकी रूप से अमल किया. रीवर फ्रंट योजना का सपना दलित मेयर जेठालाल परमार के समय में कांग्रेस ने देखा था. 1984-85 में कागदीवाड को चारो तरफ पुलिस ने घेरा डाला उस वक्त स्वैच्छिक संस्थाये नदी के पट में उतर पडी थी. 2002 के नरसंहार ने नागरिक समाज को और अधिक संवेदनहीन बना दिया ऐसा कहेंगे? या बिल्डर लॉबी और सत्ता की सांठगांठ अधिक सबल बनी है ऐसा कहेगें?

कांग्रेस - गुजरात में नरेन्द्र मोदी के सबसे मजबूत समर्थक के रूप में कोंग्रेस की कामगीरी इतिहास में जरूर दर्ज की जायेगी. गुजरात में नरेन्द्र मोदी सत्ता पर रहेगा, तब तक समग्र भारत के मुसलमान कांग्रेस को ही वॉट देंगे यह समीकरण सच साबित हुआ.

सेक्युलर सवर्णों – दंगो में दलितों-आदिवासियों ने बडे पैमाने पर हिस्सा लिया, इस अफवाह का देश और दुनिया में ढोल बजा बजाकर प्रचार किया और खुद गील्ट फीलिंग में से मुक्त हो गये. सवर्ण होने के नाते दलितों, आदिवासीओं की ओर से बोलने का ठेका तो था ही, अब सेक्युलर बने तो मुसलमानो के प्रवक्ता बनने का बोलने का अधिकार भी मिल गया.

एनजीओ - दस साल बाद इन्साफ की डगर पर प्रोजेक्ट आधारित एनजीओ इकठ्ठी हो सकती है, परन्तु समुदाय इकठ्ठे नहीं होते.

मध्यम वर्ग - माधवसिंह सोलंकी गुजरात को जापान बनाने की  बाते किया करते थे, तब उन्हे एहेसास नहीं होगा कि उनके पक्ष की जडें उखाड फेंकनेवाला प्रत्याघाती विचारधारा को समर्पित पक्ष हिन्दु मध्यमवर्ग की आंखो पर विकास की पट्टी बांध देगा. बीते दस सालों में मध्यम वर्ग और भी स्वार्थी बना है. भ्रष्ट व्यवस्था के सभी लाभों को अपनी जेब में डालकर "मैं अन्ना हजारे हुँ" की टोपी पहेनकर आश्रम रोड पर दौडने लगा यह मध्यम वर्ग.

मुसलमान - गोधराकांड को एक भयानक दु:स्वप्न समझकर मुसलमान अस्तित्व के संघर्ष में दुगनी ताकात से जुट गया. भाजप गुजरात में हमेशा रहेगा ही ऐसी दहशत के साथ जीने की आदत पड गई. परन्तु लंगडे घोडे जैसी कांग्रेस को वॉट देने की लाचारी उसे खटक रही है.

दलितो - "जिस दिन हरिजन हथियार लेकर सवर्णो पर हमला करेंगे, उस दिन मैं पांव में घूंघरु पहनकर नाचूंगा" ऐसा 30 साल पहले अमदाबाद के आंबेडकर हॉल में कहनेवाले भानु अध्वर्यु के हर एक शब्द पर मैं तालिया बजाता था। 2002 में मुसलमान विरोधी सवर्ण-आक्रोश में दलितों को भी शामिल होता देख कर मैं सोचता था, क्या यही समाज परिवर्तन है, जिसके लिये मैं इतना रोमांचित था?

दस सालो में दलितों का अग्रवर्ग कांग्रेस को छोडकर भाजपा की तरफ मुडा है और सत्ताकेन्द्र के पास रहकर पर्याप्त मखन-मलाई खाने के बाद अब दलित समाज के लिये चिंतन शिबिर आयोजित कर रहा है. संघ परिवार के मासिक "समरसता सेतु" के फरवरी-2012 अंक के मुताबिक, धंधुका तहसील के ब्राह्मण बटुकों को यज्ञोपवित संस्कार प्रसंग पर गुरुमंत्र की दीक्षा एक दलित संत पूज्य श्री शंभुनाथजी महाराज के हाथो से दिया गया. गुजरात में संघ परिवार के एक प्रखर प्रचारक का शासन हो तब दलितो को ऐसी फिजूल बातो से संतोष कैसे हो सकता है? द्वारका, अंबाजी, डाकोर जैसे हिन्दुओं के पवित्र धामों में वाल्मिकी समाज के सुशिक्षित युवकों की बतौर पूजारी नियुक्ति हो तो ही सही समरसता होगी. नरेन्द्र मोदी को ये कहने की ताकात देवजीभाई रावत, प्रो. पी. जी. ज्योतिकर, मिनेश वाघेला जैसे भगवा-दलितों में है क्या?

हमने राजपुर-गोमतीपुर की बीस चालीओं के 1052 कुटुंबो के 4026 विद्यार्थीओ का सर्वे करवाया तब ड्रोप-आउट रेट का प्रमाण 54.11 जानने मिला. कोलकत्ता के सोनागाछी विस्तार की सेक्स वर्कर्स के संतानो के ड्रोप-आउट रेट का प्रमाण भी लगभग इतना है. इसकी जानकारी पश्चिम बंगाल के महिला और बाल कल्याण मंत्रालय और युनिसेफ ने संयुक्तरूप से अपने अभ्यास में दी गई है. सिर्फ एक सूत्र में दलितों की हालत व्यक्त करनी हो तो, मैं कहूंगा कि, गांव में खेत नही, शहर में शिक्षा नही."
I
बीते दस सालो में दलितों और मुसलमानो के बीच जो खाई खडी हुई वह तो सिर्फ एक परिणाम है, उसकी जड तो सन् 1981 में शुरू हुये आरक्षण विरोधी दंगो में है, जिसका विस्तार से वर्णन मैंने मेरी लघु पुस्तिका "भगवा नीचे लोही" में की है. गोधरा में हुए संमेलन "न्याय की खोज" में मैंने दो प्रमुख मुद्दें कहे थे, वे प्रस्तुत करता हूँ. मैंने कहा था, "नरेन्द्र मोदी के पोलिटिकल एन्काउन्टर का समय हो गया है. तीस साल पहले गुजरात की विधानसभा में मुसलमानों के  नव प्रतिनिधि बैठते थे. आज सिर्फ चार धारासभ्य है. बाकी की पांच बेठको पर भाजपा के उम्मीदवार चुने गये है. भाजपा ने मुसलमानो के खिलाफ दलितों, आदिवासीओ और पिछडो को उकशाया और दंगे करवाये. मुसलमाने ने जो बैठके गंवाई उनमें से एक भी  बैठक पर आज दलित, आदिवासी या पिछडे वर्ग का कोई भी व्यक्ति नही चुना गया. नरेन्द्र मोदी सचमुच सदभावना चाहते है तो, कम से कम एक मुसलमान को तो उनकी केबिनेट में मंत्री बनाया होता...

आनंदीबहेन ने पाटण के दलित महोल्लो में जाकर सफाई कर्मचारी वृद्धो के पांव धोये. और समस्त गुजरात के सफाई कर्मचारी खुशी से गदगदित् हो गये. आनंदीबहेन तो नाटक करती है. हम नाटक नही करते. गोधरा का मुसलमान गुजरात का मुख्यमंत्री हो सकता है, शर्त बस इतनी है कि दलितों को समानता दिलाने के लिये उसे लडना होगा. आपकी तरह इस राज्य में बहोत लोग, दलितों, आदिवासीओ, पिछडे लोग न्याय की खोज में है. उनकी लडाई आपकी लडाई बनेगी तब ही आपकी जीत होगी."

भारतीय संस्कृति के नाम पर पीछडो-दलितों के खिलाफ जहर

जैनों के महाराज चंद्रशेखर विजयजी की अंतिम यात्रा का द्रश्य,
इन्सेट में महाराज, जो भारतीय संस्कृति के नाम पर दलितों-
पीछडों के खिलाफ जहर उहलते रहे


एक समुदाय का महाराज मर जाता है तो उसको जलाने के लिए भी पैसे की बोली लगती है, और रू. 5.5 करोड रूपिया देनेवाला आदमी मुखाग्नि प्रगटाने का सन्मान प्राप्त करता है. अब इस देश में रू. 5.5 करोड आप खड्डे खोदकर या झाडु मारकर या कपडे बुनकर तो कमा नहीं सकते. उसमें बहुत सारा हिस्सा काले धन का जरूर होगा. और आप ढेर सारे चार्टर्ट एकाउन्टन्ट्स को रूश्वत देकर इतना काला धन अर्जित करते हो और वह कीसी धार्मिक संत या स्वामी या महाराज के पीछे लूटाते हो तो वह महाराज भी आपके काले धन की रखवाली करनेवाला बडा आइडीयोलोग ही होना चाहिए. गुजरात में जैनों का चंद्रशेखर विजयजी महाराज ऐसा ही आइडीयोलोग था, जिसके कहने पर नरेन्द्र मोदी ने स्लोटरहाउसीस बंध करवाये. इन्ही लोगों की प्रेरणा से गुजरात में तथाकथित अहिंसाप्रेमी सज्जनों चंद कसाईओं को दुनिया के सबसे बडे हत्यारे घोषित करने का अभियान चला रहे है. ऐसे चंद्रशेखरविजयजी महाराज अपनी किताब में दलितों-पीछडों के बारे में क्या कहते, जरा गौर करें.   

"एक समय ऐसा आयेगा कि राजकरण के प्रशानिक क्षेत्र में सभी जगह बी.सी. का प्रभुत्व हो जायेगा। राष्ट्रपति बी. सी., प्रधानमंत्री बी. सी., बैंक में बी. सी., लश्कर में बी.सी. सभी जगह उनके आधिपत्य के नीचे आ जाएगी भारत की बलवान प्रजा क्षत्रिय, वेद, विद्या-व्यासंगी प्रजा ब्राह्मण, बुद्धिमान प्रजा जैन!"

"इससे किसी का कल्याण नहीं हो सकता। बी. सी. का भी नही, क्योंकि इन क्षेत्रों में उनका काम नहीं है। वहां जिस प्रकार की शक्ति, बुद्धि वगेरे की जरुरत है, वह उन्हें विरासत में मिली ही नहीं है। सिर्फ शिक्षण से सब कुछ नही मिलता। उन्हे उंचा लाने का कोई दूसरा रास्ता भी नही है।"

"संस्कृति के जानकार कहते है कि उन्हे उंचा लाना हो तो उनकी रोजी-रोटी का वंशपरंपरागत जो व्यवसाय था, वह वापस लाना होगा। हरिजनों को उनका हाथशाल का धंधा, गिरिजनो को उनके अडाबीड जंगल वापस सोंप देने पडेंगे।"

"जगजीवनराम जैसे किसी को प्रधान बना देने से, एक ही नल से सब को पानी पिलाने से सब का पेट नही भरनेवाला। यह तो धोखाधडी है। पिछडी कही जानेवाली जातिओं को गलत रुप से भडकाकर उन्हे बर्बाद और बेहाल करने की कूटनीति है।" ( अब तो तपोवन ही तरणोपाय, पा.47)


मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

दलित सेना राजस्थान - संघ परिवार का मुखौटा

दलित सेना राजस्थान की आड में संघ
 परिवार रच रहा है साजिश

दलित सेना राजस्थान के नाम से फेसबुक पर एक एकाउन्ट है. वैसे उनकी प्रोफाइल खुद को नोन-पोलिटिकल बताती है और धार्मिक विचार बौद्ध बताती है. उसका प्रदेश सचिव नेमीचंद्र मट्टु है. इस एकाउन्ट की टाइमलाइन पर जो पोस्टिंग हो रही हैउस पर जरा गौर करे. कोई मानसिंघ पवार मनु सींघवी की पोर्न सीडी लेकर आया हैऔर लिखता है,

"एस. आई. टी. ने डी मोदी जी को क्लीन चिट !!
इधर सेकुलर कुत्तो और कांग्रेसियों की मर गई माँ !!
अब ये कुत्ते न्यूज़ पोइंटोप्राइम टाईमोब्रेकिंग नयूजो पर
 इकठ्ठे हो कर मातम मनाने वाले हे !!
इनका ताउजी बेदाग़ निकला !!"

दूसरी पोस्टिंग चाणक्य का अखंड भारत के नाम है, और उसमें हिन्दु सनातनी देवी देवताओं की दूर्दशा का चित्रण है.

तीसरी पोस्टिंग भरतकुमार राजपुरोहित की है, जिसका नाम है हिन्दु योद्धा भर्ती अभियान.

इन चीजों को देखकर साफ साफ लगता है की संघ परिवार का मुखौटा हे दलित सेना राजस्थान, जिसमें ज्यादातर नोन-दलित है. 

हम इन लोगों से इतना ही कहते है कि कांग्रेसियों को जी भरके गाली दो. हमें कोई एतराज नहीं. मगर बीजेपी और नरेन्द्र मोदी दलितों के मसीहा नहीं है. नरेन्द्र मोदी तुम्हारा बाप हो सकता है. हमारा नहीं. 

हम सभी दलित बुद्धिजीवियों से अनुरोध करते हैं, इस राजस्थान दलित सेना से कतई ना जूडे.





शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

न्याय के अलग मानदंड

गुजरात सरकार सात साल से लोकायुक्त की नियुक्ति
 नहीं कर रही थी. महामहिम राज्यपाल कमला बेनीवाल
 ने अपनी संवैधानिक  जिम्मेदारी का पालन करते हुए
लोकायुक्त के पद पर सेवा-निवृत्त न्यायमूर्ति ए. आर.
महेता की नियुक्त की, जिसे गुजरात हाइकोर्ट ने भी
समर्थन दिया
हिन्दु राष्ट्र की स्थापना के लिए संसदीय लोकशाही का
इस्तेमाल करने की विचारधारा से लैस राष्ट्रीय  स्वयं
सेवक संघ के प्रचारक के इशारे पर पूरे अहमदाबाद
शहर में दीवारों पर राजभवन या कांग्रेस भवन ऐसे
सूत्र लिखकर राज्यपाल के ओहदे की सरासर मज़ाक
उडाई गई और राज्यपाल की तौहीन की गई
यह सारे फोटो अहमदाबाद के पोलीस स्टेडीयम के सामनेवाली
दीवार पर लिखे गए है. राजभवन  या कांग्रेस भवन ऐसे स्लोगन
के साथ बीजेपी का निशान कमल अंकित किया गया है.
कुछ समय पहले राजकोट में वालजीभाई सोलंकी ने
मुख्यमंत्री के खिलाफ दीवार पर स्लोगन लिखा था. उनके
खिलाफ पुलीस ने एफआईआर दर्ज की थी. वालजीभाई
जब वह एफआईआर रद करवाने गुजरात हाइकोर्ट
में गए तब हाइकोर्ट ने ऐसा कहकर उनकी अर्जी खारीज़
कर दी कि राज्य के मुख्यमंत्री की गरीमा को लांछन
लगना नहीं चाहिए.

यहां राज्य का शासक पक्ष खुद अपने राजकीय स्वार्थ
की खातिर राज्यपाल के ओहदे की गरीमा का निलाम
कर रहा है, यह कितना उचित है
?

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

रीडल्स इन हिन्दुइज़म के हिन्दी अनुवाद में जानबूझकर की गई गलतियां

कहीं बाबासाहब की प्रतिमा को कोई जूते का हार पहेनाता है तो हम भडक उठते है. सडकों पर आ जाते हैं, मरने मारने पर उतारु हो जाते हैं. यहां एक बेमिशाल, ऐतिहासिक किताब का पूरा हार्द खत्म करने की साजिश रची गई और हम चूप बैठे है. यह कैसी अंबेडकर-भक्ति है?


महाराष्ट्र सरकार ने 1987 में प्रगट किया बाबासाहब का 
अंग्रेजी में वोल्युम, जिसने राम-कृष्ण की काल्पनिक कहानियों
का सत्य लोगों के सामने रखा


 बाबासाहब की किताबों का हिन्दी अनुवाद करने के लिए भारत सरकार
के कल्याण मंत्रालय ने बनाया डा. अम्बेडकर प्रतिष्ठान, जिसने 1995
में रीडल्स का हिन्दी संस्करण प्रगट किया. मंत्रालय के संयुक्त सचिव
गंगादास प्रतिष्ठान के सदस्य सचिव थे. प्रबंध संपादक थे कन्हैयालाल
चंचरीक. इस किताब के संपादक थे कैलाश चन्द्र सेठ और मोहनदास
नैमिशराय. अनुवादक थे सीताराम खोड़ावाल.
किताब का प्रवेश, जिसमें बाबासाहब बक्ले के ग्रंथ हिस्ट्री ऑफ
 सीवीलाइजेशन का उद्धरण लेते हैं, 
"इट इज़ एविडन्ट धेट अनटील
 डाउट बीगन प्रोग्रेस वोझ इम्पोसीबल.फोर एज़ वी हेव क्लीयरली सीन,
धी एडवान्स ऑफ सीवीलाइझेशन सोलली डीपेन्ड्ज ऑन धी
 एक्वीझीशन मेइड बाय धी ह्युमन इन्टेलेक्ट एन्ड ऑन धी एक्सटेन्ट
टु वीच धोझ एक्वीझीशन्स आर डीफ्युज्ड.........
"

अब इसका हिन्दी अनुवाद: "यह स्पष्ट है कि जब तक संदेह नहीं
उपजते, तब तक प्रगति असंभव है. हमने यह देखा है कि सभ्यता
मानव के आध्यात्मिक ज्ञान के योगदान पर निर्भर रही है और इस
बात पर आलम्बित है कि इस ज्ञान को कहां तक संचारित किया
गया है.
  अनुवादक ने ह्युमन इन्टेलेक्ट का अनुवाद मानव बुद्धि
करने के बजाय आध्यात्मिक ज्ञान किया है. ऐसी गलती जानबूझकर 

ही हो सकती है...

इट इज आस्क्ड हाउ धी वेदा केन कन्स्टीट्यूट प्रुफ ऑफ ड्युटी 
व्हेन इट कन्टेन्स सच इनकोहरन्ट नोनसेन्स एज़ धी फोलोवींग

एन ओल्ड ओक्स, इन ब्लेन्केट एन्ड स्लीपर्स, इज़ स्टेन्डींग एट

धी डोर एन्ड सींगींग बेनेडीक्शन. ए ब्राह्मन फीमेल, डीज़ाइरस

ऑफ ऑफस्प्रींग, आस्क्स, प्रे ओ कींग, वोट इज़ धी मीनींग ऑफ

इन्टरकोर्स ऑन धी डे ऑफ धी न्यु मुन ? ओर धी फोलोवींग,
धी काउ सेलीब्रेटेड धीस सेक्रीफाइस. 

अब इसका हिन्दी पढें: यह प्रश्न किया गया है कि कर्तव्यो
का साक्ष्य कैसे हो सकता है, जबकि उनमें ऐसी असंगत
और अनर्गल बातें भरी पडी है जैसे "कम्बल और खड़ाउ
पहने एक बूढा द्वार पर खडा है और आशीष के गीत
 गा रहा है. समर्पण को तत्पर एर ब्राह्मणी कहती है, 
हे राजन बता, प्रतिपदा के दिन संभोग के क्या अर्थ है
अथवा यह गऊओने इस बलि पर उत्सव मनाया. यहां
धी ब्राह्मीन फीमेल डीजाइरस ऑफ ऑफस्प्रींग का अनुवाद
संतानप्राप्ति की इच्छा रखनेवाली ब्राह्मण स्त्री होना चाहिए.
यहां लिखा है, फोर धीस जेमीनी रीलाइज़ ऑन धी कन्डक्ट ऑफ
मेन व्हु हेज़ बीलीव्ड इन वेदान्त (उसका अनुवाद कैसा उल्टा कर
दिया, यह देखीये..
अनुवाद किया है, इसीलिए जेमीनी उन लोगों के विरुद्ध है, जो
वेदांत में आस्था रखते है. 
डा. बाबासाहब अंबेडकर की किताब रीडल्स इन हिन्दुइज़म का यह अनुवाद अत्यंत क्लिष्ट, दुर्बोध है. हमारा मानना है कि बाबासाहब की किताबों का अनुवादक उनकी विचारधारा से परिचित नहीं है तो अनुवाद ठीक तरह से हो नहीं सकता. अनुवाद वाकइ में एक कठीन कला है. हमने यह भी देखा कि गुजरात में जिन्हो ने रीडल्स ऑफ हिन्दुइज़म का गुजराती अनुवाद किया उन्होने भी हिन्दी अनुवाद का सहारा लिया था और वह सारी गलतियां दोहराई थी, जो हिन्दी अनुवादक ने की थी. हमने जब गुजराती अनुवादों के वेटिंग का कार्य किया तब यह बात हमारे ध्यान पर आई थी. 

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

गुजरात हाइकोर्ट में न्यायमूर्तिओं पर फेंके गए जूत्ते

गुजरात हाइकोर्ट में कल दो अलग घटनाओं में दो जज पर चप्पल फेंके गए. करीब 12 बजे जस्टिस एम. डी. शाह  की तरफ रामाजी जोइताजी ठाकोर ने चप्पल फेंका. रामाजी के पिता ने हाइकोर्ट में एक अर्जी की थी. वह अर्जी रद हो गई थी. मगर रामाजी को अंग्रेजी नहीं आती थी, इस लिए उसे अर्जी रद होने के बारे में पता नहीं था. कल जब अर्जी का गुजराती अनुवाद उसके हाथ में आया, तब उसने गुस्से में आकर जज पर चप्पल फेंका.

दूसरी घटना में भायावदर के भवानीदास चाय का स्टोल चलाते थे, कोर्पोरेशन के कर्मी उसका स्टोल उठाके ले गए थे. भवानीदास ने लॉअर कोर्ट में केस किया था और वह जीत भी गया था, फिर भी उसे कोर्पोरेशन स्टोल चलाने नहीं देती थी. भवानीदास ने सन 2003 में हाइकोर्ट में अपील की थी. आठ साल तक कोइ फैंसला न आने की वजह से गुस्से में आकर भवानीदास ने जस्टिस झवेरी को जूत्ता मारा. हालांकी इन दोनों घटनाओं में कीसी को कुछ चोट पहुंची नहीं है.

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ऐसे हिन्दु राष्ट्र को लोग गलती से गुजरात कहते है




हिन्दु राष्ट्र एक ऐसा राष्ट्र है,
जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक मुख्यमंत्री होता है,
जिसमें खुन का बदला खुन होता है, कानून और व्यवस्था का नीलाम होता है, एक जगह किसी की कत्ल होती है तो, दूसरी जगह बैर लेने के लिए निर्दोष लोग मारे जाते है,
जिसमें गांवों में बसते दलितों पर अत्याचार होते रहेते हैं, प्रशासन उत्सवो में गुलतान रहेता है और शहर के दलित टीवी पर क्रिकेट मेच देखने में व्यस्त रहते हैं,
जिसमें बीटी कोटन के खेतों मे नाबालिग आदिवासी बच्चों तथा बच्चियों का शोषण होता है और राज्य सरकार उसकी जांच करने आते राष्ट्रीय बाल आयोग की खिल्ली उड़ाती है,
जिसमें राज्य के महिला मंत्री वाल्मीकि समुदाय के बुज़ुर्गों के पांव धोने का दंभ करती है, मगर उनके आर्थिक उत्थान के कोई कदम नहीं लिए जाते,
जिसमें मुख्यमंत्री के विरोधियों को देशद्रोही की उपाधि दी जाती है,
जिसमें क्रान्ति की कविता लिखनेवाले कवि सरकारी इनाम के लिए तडपते हैं और जिसकी जैसी किंमत उसी प्रकार सबका मुंह बंध किया जाता है,
जिसमें बमनवाद का विरोध करनेवाले लोग भी मुख्यमंत्री शुद्र जाति के है, ऐसा कहकर उसका बखान करते हैं,
ऐसे हिन्दु राष्ट्र को लोग गलती से गुजरात कहते है.